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यन्नू॒नम॒श्यां गतिं॑ मि॒त्रस्य॑ यायां प॒था। अस्य॑ प्रि॒यस्य॒ शर्म॒ण्यहिं॑सानस्य सश्चिरे ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yan nūnam aśyāṁ gatim mitrasya yāyām pathā | asya priyasya śarmaṇy ahiṁsānasya saścire ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। नू॒नम्। अ॒श्याम्। गति॑म्। मि॒त्रस्य॑। या॒या॒म्। प॒था। अस्य॑। प्रि॒यस्य॑। शर्म॑णि। अहिं॑सानस्य। स॒श्चि॒रे॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:64» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:2» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (अस्य) इस (प्रियस्य) सुन्दर (अहिंसानस्य) हिंसा से रहित (मित्रस्य) मित्र के (शर्मणि) गृह में (यत्) जिस (गतिम्) गमन को विद्वान् जन (सश्चिरे) प्राप्त होते हैं, उस गमन को मैं (नूनम्) निश्चित (अश्याम्) प्राप्त होऊँ और (पथा) मार्ग से (यायाम्) जाऊँ ॥३॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य विद्वानों का अनुकरण कर और धर्ममार्ग से चलकर उत्तम गति को प्राप्त होवें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! अस्य प्रियस्याहिंसानस्य मित्रस्य शर्मणि यद्यां गतिं विद्वांसः सश्चिरे तामहं नूनमश्यां पथा यायाम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) याम् (नूनम्) निश्चितम् (अश्याम्) प्राप्नुयाम् (गतिम्) (मित्रस्य) सख्युः (यायाम्) (पथा) मार्गेण (अस्य) (प्रियस्य) कमनीयस्य (शर्मणि) गृहे (अहिंसानस्य) हिंसारहितस्य (सश्चिरे) समवयन्ति प्राप्नुवन्ति ॥३॥
भावार्थभाषाः - सर्वे मनुष्या विद्वदनुकरणं कृत्वा धर्म्ममार्गेण गत्वा सद्गतिं प्राप्नुवन्तु ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व माणसांनी विद्वानांचे अनुकरण करून धर्ममार्गाने चालून उत्तम गती प्राप्त करावी. ॥ ३ ॥